देहरादून: ओबीसी आरक्षण पर समिति ने लिया अंतिम फैसला, अब पंचायत चुनाव का रास्ता साफ॥

राजीव चावला / एडिटर
देहरादून: उत्तराखंड में पंचायत चुनाव को लेकर जारी संवैधानिक संकट के बीच एक बड़ी खबर सामने आई है। सरकार द्वारा गठित मंत्रिमंडलीय उप समिति ने ओबीसी आरक्षण पर अंतिम निर्णय ले लिया है। समिति की सिफारिशें जल्द ही मुख्यमंत्री को सौंपी जाएंगी, जिसके बाद पंचायत चुनाव की राह लगभग साफ मानी जा रही है।
पंचायत चुनावों में देरी से उपजा था संवैधानिक संकट
राज्य के 12 जिलों (हरिद्वार को छोड़कर) में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव लंबे समय से लंबित हैं। चुने हुए प्रतिनिधियों का कार्यकाल पहले ही समाप्त हो चुका है और छह महीने का विस्तार भी बीत चुका है। ऐसे में चुनाव न होने को लेकर संवैधानिक संकट गहराता जा रहा था। साथ ही, अदालत का भी सरकार पर चुनाव शीघ्र कराने का दबाव है।
ओबीसी आरक्षण बना था चुनाव में बाधा
चुनाव में देरी की एक मुख्य वजह ओबीसी आरक्षण पर स्पष्टता की कमी थी। इस मुद्दे के समाधान के लिए राज्य सरकार ने वन मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में एक मंत्रिमंडलीय उप समिति गठित की थी। अब इस समिति ने ओबीसी आरक्षण का फॉर्मूला तय कर लिया है, जिसकी रिपोर्ट जल्द मुख्यमंत्री को सौंपी जाएगी।
50% आरक्षण की संवैधानिक सीमा
राज्य में एससी और एसटी के लिए पहले से ही 22% आरक्षण तय है। संविधान के अनुसार कुल आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता। इस लिहाज से ओबीसी को अधिकतम 28% आरक्षण ही मिल सकता है।
आरक्षण का फार्मूला क्या हो सकता है?
जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए: प्रदेश स्तर पर ओबीसी जनसंख्या के आधार पर।
जिला पंचायत सदस्य व ब्लॉक प्रमुख: जिले की ओबीसी जनसंख्या को आधार बनाकर।
बीडीसी और ग्राम पंचायतें: ब्लॉक स्तर की ओबीसी जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण।
चूंकि 2011 के बाद कोई जनगणना नहीं हुई, इसलिए 2011 की जनसंख्या के आंकड़ों को ही आधार माना जाएगा।
क्या होगा अगला कदम?
समिति की सिफारिशें सोमवार को मुख्यमंत्री को सौंपी जाएंगी। इसके बाद यह प्रस्ताव 11 जून को होने वाली कैबिनेट बैठक में रखा जाएगा, जहाँ इस पर अंतिम मुहर लग सकती है।