ख़बर पड़ताल ब्यूरो:-“हाई कोर्ट को नैनीताल से अन्यत्र शिफ्ट करने से संबंधित हाई कोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। साथ ही पक्षकारों को नोटिस जारी किया है…”
उत्तराखंड हाईकोर्ट को नैनीताल से कहीं और स्थान पर शिफ्ट करने से संबंधित मामले को लेकर आज शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय में सुनवाई हुई, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगा दिया है. इसके साथ ही सभी पक्षकारों को नोटिस भी जारी किया है. उत्तराखंड हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की एसएलपी (स्पेशल लीव पिटीशन) पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीएस नरसिम्हा व जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने ये आदेश जारी किया।
उत्तराखंड में इन दिनों नैनीताल हाईकोर्ट की शिफ्टिंग को लेकर गहमा गहमी चल रही है. नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा इसके लिए वोटिंग कराई जा रही है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट की नैनीताल से शिफ्टिंग पर रोक लगा दी है. इस मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डीसीएस रावत ने इसकी पुष्टि की है, इससे पहले बीती 8 मई को मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने एक आदेश पारित किया था, जिसमें हाईकोर्ट को नैनीताल से किसी अन्य स्थान पर शिफ्ट करना आवश्यक बताते हुए सरकार को निर्देश दिए गए थे कि एक माह के अंदर हाईकोर्ट के लिए स्थान का चुनाव करें।
इसके साथ ही हाईकोर्ट रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिए गए थे कि वो इस मामले में अधिवक्ताओं व वादकारियों से राय लेने के लिए एक पोर्टल बनाएं. रजिस्ट्रार जनरल को ये भी निर्देशित किया गया था कि सभी लोग 31 मई तक ही अपने विकल्प का प्रयोग करेंगे, उच्च न्यायालय ने एक समिति का गठन करने को भी कहा था जिके अध्यक्ष रजिस्ट्रार जनरल होंगे. इस समिति में विधायी और संसदीय मामलों के प्रमुख सचिव, प्रमुख सचिव (गृह), दो वरिष्ठ अधिवक्ता, उत्तराखंड बार एसोसिएशन से एक सदस्य और बार काउंसिल ऑफ इंडिया से एक अन्य सदस्य होंगे. इस कमेटी को सात जून तक सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सौंपनी है।
इस प्रक्रिया के बाद सरकार की सिफारिश और विकल्पों को मुख्य न्यायाधीष के समक्ष रखा जाएगा. वहीं, हाई कोर्ट के आदेश के बाद रजिस्ट्रार जनरल की ओर से उच्च न्यायालय शिफ्टिंग को लेकर अखबारों में विज्ञापन देकर राय मांगी गई है, हाईकोर्ट को नैनीताल से ट्रांसफर कर अन्यत्र शिफ्ट करने की वजह वनों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को बताया गया था. कोर्ट का मानना था कि वर्तमान स्थान 75 फीसदी प्रतिशत पेड़ों से घिरा है और ऐसे में अगर नई बल्डिंग बनाई जाती है तो पेड़ों को काटना पड़ेगा. इससे बचाव के लिए कोर्ट द्वारा ये भी कहा गया था कि हल्द्वानी के गोलापार में 26 हेक्टेयर का भूमि को नए स्थान के लिए प्रस्तावित किया गया है।
हाईकोर्ट ने उत्तराखंड मुख्य सचिव को न्यायालय के लिए ऐसी उपयुक्त भूमि खोजने का आदेश दिया था जहां जज, अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए आवासीय क्वार्टर, न्यायालय कक्ष, सम्मेलन कक्ष, लगभग सात हजार वकीलों के लिए कक्ष, एक कैंटीन और पार्किंग सुविधा हो. इसके साथ ही क्षेत्र में चिकित्सा सुविधाएं और अच्छी कनेक्टिविटी भी होनी चाहिए. कोर्ट ने मुख्य सचिव को एक महीने के भीतर प्रक्रिया पूरी करने को कहा था और सात जून तक रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए थे।
हालांकि, बार एसोसिएशन और तमाम अधिवक्ता इस फैसले के खिलाफ उतर आए थे और इसे जल्दबाजी में लिया फैसला बताया था. हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डीसीएस रावत का कहना था कि यह आदेश राज्य पुनर्गठन विधेयक के विपरीत है और प्रमुख बेंच तय करने का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास है, जिसके बाद आज हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की SLP पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता पीवीएस सुरेश बहस ने की. हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डीसीएस रावत ने इसकी पुष्टि की है।
रिपोर्ट: साक्षी सक्सेना