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“उत्तराखंड के तीन गांव सील, बाहरी लोगों के लिए नो एंट्री—जानें क्यों?”

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ख़बर पड़ताल ब्यूरो:- केदारघाटी में जाखराज मेले की तैयारियां अंतिम चरण में, तीन गांवों में परंपरागत लॉकडाउन लागू

धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ा जाखराज मेला 14-15 अप्रैल को… अंगारों के बीच नृत्य करेंगे जाख देवता… गांवों में आज से बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित…

उत्तराखंड की केदारघाटी अपनी प्राचीन धार्मिक परंपराओं और लोक संस्कृति के लिए जानी जाती है। इन्हीं परंपराओं में से एक है जाखराज मेला, जो हर साल बैसाखी के अगले दिन आयोजित होता है। इस वर्ष यह मेला 14 अप्रैल को जाखधार (गुप्तकाशी) में आयोजित होगा। मेले की तैयारियां अंतिम चरण में हैं।

इस मेले की शुरुआत चैत माह की 20 प्रविष्ट से होती है, जब बीज वापन मुहूर्त के साथ इसकी योजना तय की जाती है। लेकिन इसका मुख्य आयोजन बैसाखी के अगले दिन होता है।

तीन गांवों—देवशाल, कोठेडा और नारायणकोटी—में मेले से तीन दिन पहले से परंपरागत “लॉकडाउन” लागू हो गया है। इस दौरान बाहरी लोगों और रिश्तेदारों का गांव में प्रवेश वर्जित होता है, ताकि परंपरा की शुद्धता बनी रहे।

जाखराज मेले की खास बात है यहां बनने वाला भव्य अग्निकुंड, जिसे करीब 50 क्विंटल लकड़ियों से तैयार किया जाता है। लकड़ियों में खासतौर पर बांज और पैंया वृक्ष का प्रयोग होता है। यह अग्निकुंड 14 अप्रैल की रात को पारंपरिक पूजा के बाद प्रज्वलित किया जाएगा।

रातभर जलने वाले इस अग्निकुंड की रक्षा नारायणकोटी और कोठेडा के ग्रामीण करते हैं। अग्नि से तैयार दहकते अंगारों के बीच 15 अप्रैल को जाख देवता नृत्य करेंगे और श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देंगे।

जाखराज की मूर्ति देवशाल के विंध्यवासिनी मंदिर से विशेष कंडी में ढोल-नगाड़ों के साथ जाखधार लाई जाती है, और पूजा-अर्चना के बाद वापस मंदिर में स्थापित की जाती है।

जाख राजा के पश्वा, जो इस बार नारायणकोटी के सच्चिदानंद पुजारी हैं, को मेले से दो सप्ताह पहले ही अपने परिवार और गांव से अलग रहना होता है, और वे दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं। यह धार्मिक आस्था से जुड़ा विशिष्ट नियम है।

गुप्तकाशी का जाखधार मेला केदारघाटी के 14 गांवों की सामूहिक आस्था और सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है। इस मेले को देखने दूर-दराज से श्रद्धालु पहुंचते हैं, जो इसे एक अद्वितीय धार्मिक उत्सव बना देता है।

जाखराज मेला न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह स्थानीय संस्कृति, पर्यावरण, और सामाजिक समरसता का एक अनूठा उदाहरण भी है। परंपराओं को निभाने का यह जुनून आज भी केदारघाटी को विशेष बनाता है।


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