ख़बर पड़ताल:- युवाओं को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है, सुप्रीम कोर्ट ने ओपन स्कूल से 12वीं की पढ़ाई करने वाले छात्रों को बड़ी राहत ही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेंट्रल सेकेंडरी एजुकेशन बोर्ड (CBSE) और राज्य एजुकेशन बोर्ड से मान्यता प्राप्त ओपन स्कूल अब नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट यानी NEET के लिए नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) द्वारा मान्यता प्राप्त होंगे। यानी कि अब मान्यता प्राप्त ओपन स्कूलों से 12वीं (10+2) पास छात्र भी नीट परीक्षा में शामिल हो सकते हैं। या यूं कहें कि अब ये छात्र भी डॉक्टर बन सकते हैं…
नीट परीक्षा की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए एक अच्छी खबर है. अब ओपन स्कूल से पढ़ाई करने वाले छात्र भी नीट की परीक्षा दे सकते हैं. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीएसई और राज्य शिक्षा बोर्डों द्वारा मान्यता प्राप्त ओपन स्कूलों के छात्रों को नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) के लिए राष्ट्रीय मेडिकल काउंसिल द्वारा मान्यता के लिए योग्य होने की मंजूरी दे दी है. देशभर में मेडिकल उम्मीदवारों के लिए राहतभरी खबर है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) या राज्य शिक्षा बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त ओपन विद्यालयों से 10+2 उत्तीर्ण करने वाले छात्र सामान्य मेडिकल कॉलेज प्रवेश परीक्षा में बैठने के लिए योग्य हैं. न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि नेशनल मेडिकल काउंसिल ने पहले ही एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) और राज्य शिक्षा बोर्डों द्वारा मान्यता प्राप्त सभी ओपन स्कूलों को नीट के लिए नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) द्वारा मान्यता के लिए विचार किया जाएगा।
अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पारित अपने आदेश में कहा कि उपर्युक्त पत्र और सार्वजनिक सूचना के मद्देनजर यह स्पष्ट है कि सीबीएसई और राज्य शिक्षा बोर्डों द्वारा मान्यता प्राप्त ओपन स्कूल नीट परीक्षा के लिए शामिल हो सकते हैं. नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET) उन उम्मीदवारों के लिए एक अखिल भारतीय प्री-मेडिकल प्रवेश परीक्षा है, जो देश में सरकारी और निजी संस्थानों में ग्रेजुएट मेडिकल कोर्स में एडमिशन लेना चाहते हैं।
इससे पहले, ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन, 1997 पर मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया रेगुलेशन के विनियमन 4(2)(ए) के प्रावधान ने ऐसे उम्मीदवारों को परीक्षा में बैठने से रोक दिया था. वर्ष 2018 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को असंवैधानिक मानते हुए रद्द कर दिया, जिसके कारण मेडिकल काउंसिल को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा था।
रिपोर्ट: साक्षी सक्सेना