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जानिए भारत में पढ़ा वो पाकिस्तानी PM जिसे दी थी तानाशाह ने जबरदस्ती फांसी की सजा, फांसी से पहले पीएम के साथ हुई थी मारपीट भी…

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ख़बर पड़ताल ब्यूरो:- “आज हम आपको पाकिस्तान के एक ऐसे पीएम के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे तानाशाह ने फांसी पर लटका दिया था, बता दें की भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो को तो 4 अप्रैल, 1979 को फांसी पर लटका दिया गया था. उन पर एक हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप था. भुट्टों के आखिरी शब्द थे, ‘या खुदा, मुझे माफ करना मैं बेकसूर हूं.’ भुट्टो की गिरफ्तारी के समय न सिर्फ भुट्टो की पिटाई की गई थी, बल्कि फांसी घर तक उन्हें स्टेचर पर लाद कर जबरन ले जाया गया था. उससे पहले की रात में वो लगातार रोते रहे” पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो का तख्ता पलट कर फौजी तानाशाह जिया उल हक ने फांसी पर लटका दिया था, जबकि दुनिया के कई देशों ने ऐसा न करने की अपील की थी. उन पर एक हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया गया था. हालांकि, भुट्टो के आखिरी शब्द थे मैं बेकसूर हूं. 4 अप्रैल 1979 को फांसी से पहले उनको स्ट्रेचर पर लाद कर ले जाया गया था. आइए जान लेते हैं पूरा किस्सा। जुल्फिकार अली भुट्टो के पिता आजादी से पहले जूनागढ़ में दीवान थे. मुंबई में जुल्फिकार की पढ़ाई हुई थी. वह इसे अपना दूसरा घर मानते थे. यहां तक कि पाकिस्तान में रहते हुए भी वह मुंबई में बिताए अपने छात्र जीवन को याद करते थे।

भुट्टो के पिता ने जूनागढ़ के नवाब को दी थी शह

जुल्फिकार के पिता ने ही जूनागढ़ के नवाब को शह दी थी, जिसके कारण नवाब अपने राज्य को पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे. जिन्ना के साथ मिलकर पूरी तैयारी भी कर ली थी. हालांकि, भारत के सामने उनकी एक नहीं चली और नवाब को पाकिस्तान भागना पड़ा था. वहीं, जुल्फिकार के पिता के पास पाकिस्तान में काफी जमीन थी. वहां जाकर वह सियासत में सक्रिय हो गए. उन्हीं के दम पर जुल्फिकार ने वहां की सियासत में अपनी पहचान बनाई. बाकायदा पार्टी बनाई और प्रधानमंत्री के पद तक पहुंच गए। यह 5 जुलाई 1977 की बात है. पाकिस्तानी सेना के जनरल जिया उल हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो का तख्ता पलट दिया. इस बारे में जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी और पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं बेनजीन भुट्टो ने बताया था कि एक पुलिस वाले ने पाकिस्तानी फौज को प्रधानमंत्री आवास घेरते देखा तो जान की बाजी लगाकर छिपते-छिपाते दरवाजे तक आया. पुलिस वाले ने नौकर से हड़बड़ा कर कहा कि भुट्टो साहब को खबर दे दो. फौज उनकी हत्या के लिए बढ़ रही है।

बेनजीर भुट्टो ने बताई थी घटना

बेनजीर भुट्टो ने बताया था कि उस रात मां चीखते हुए मेरे कमरे में आईं और बोलीं कि जल्दी जागो, जल्दी. तब तक फौज ने हमारे घर पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया था. हम लोग तो समझ ही नहीं पा रहे थे कि क्या हो रहा है. किसलिए हमला किया गया है. आखिर एक दिन पहले ही पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और विपक्ष में समझौता हुआ था. जनरल जिया उल हक ने दो दिन पहले मेरे पिता जुल्फिकार अली भुट्टो के पास आए थे और वफादारी का वादा किया था।

फोन पर भुट्टो ने जिया से की थी बात

उधर, जब प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को यह खबर मिली तो उन्होंने कहा कि मेरी जिंदगी खुदा के हाथ में है. फौज अगर मेरी जान लेने आ रही है तो छिपने का कोई मतलब नहीं है. उन्हें आने दो. साथ ही उन्होंने फोन पर जिया उल हक से बात की तो उसने कहा कि अभी कुछ समय के लिए आपको हिरासत में लेना पड़ रहा है. अगले तीन महीने में दोबारा चुनाव करवा दूंगा और आप दोबारा प्रधानमंत्री बनेंगे. इसके बाद जुल्फिकार भुट्टो गिरफ्तार कर लिए गए।

सीधे हाईकोर्ट में चला था मुकदमा

जुल्फिकार अली भुट्टो पर अक्तूबर 1977 में हत्या का मुकदमा शुरू कर दिया गया. सीधे हाईकोर्ट में शुरू हुए मुकदमे में उनको फांसी की सजा मिली. भुट्टो ने अपने बचाव में कोर्ट में कहा था कि मुझे अपनी पैरवी नहीं करनी है. मैं यह बात सामने लाना चाहता हूं कि यह केस एक बदशक्ल नाइंसाफी का उदाहरण है. सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी सजा नहीं बदली और 4 अप्रैल 1979 को उनको रावलपिंडी जेल में फांसी पर लटका दिया गया. बताया जाता है कि गिरफ्तारी के समय भुट्टो की पिटाई भी की गई थी. फांसी के लिए उन्हें स्ट्रेचर पर लाद कर जबरदस्ती ले जाया गया था, हालांकि, दुनिया के कई देशों ने भुट्टो के प्रति नरमी दिखाने के लिए जिया उल हक से अपील की, लेकिन उसने किसी की भी बात नहीं मानी. मुंबई में पले-बढ़े भुट्टो के भारत में भी कई समर्थक थे. पाकिस्तान का आंतरिक मामला बताकर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने तो अपील नहीं की थी, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नरमी की अपील की थी।

रिपोर्ट:- साक्षी सक्सेना 


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