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*”भूमि मालिकों को मुआवजा सरकारी दान नहीं, ढोल पीटना और दिखावा नापसंद…”, जानिए किस मामले में supreme court ने की सख्त टिप्पणी*

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सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ज़मीन मालिकों को मुआवज़ा सरकारी दान नहीं है. अदालत ने प्राधिकरण की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि भूस्वामियों की ओर से मांगी गई ज़मीन मुहैया करा दी गई है…अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सख्त टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि भूमि मालिकों को मुआवजा देकर सरकार दान नहीं कर रही है। कोर्ट ने कहा कि 20 साल तक जमीन अपने पास रखने के बाद, अब कह रहे हैं कि इससे भूस्वामियों को लाभ हो रहा है, ऐसा रवैया अप्रिय है। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) ने इस मामले में तर्क दिया था कि देरी से भूस्वामियों को फायदा हुआ है। उन्हें 1956 के बजाय 2013 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत मुआवजे की अच्छी राशि मिलेगी। तब कोर्ट ने कहा कि भू-स्वामियों को 20 साल तक भूमि का उपयोग करने के उसके सांविधानिक अधिकार से वंचित करना…फिर मुआवजा देकर दयाभाव दिखाना व ढोल पीटना कि राज्य उदार है, अप्रिय है।

सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राज्य अधिगृहीत भूमि का मुआवजा देकर भूमि मालिकों को कोई दान नहीं दे रहा। सरकार जिनकी भूमि अधिग्रहित करती है, वे मुआवजे के हकदार हैं। शीर्ष अदालत ने दो टूक कहा कि राज्य व उसकी मशीनरी यह दिखावा नहीं कर सकते कि वे ऐसे भूस्वामियों को मुआवजा देने में दयालु हैं। शीर्ष अदालत ने गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। ये अधिकारी कुछ भूस्वामियों को पर्याप्त मुआवजा देने में विफल रहे थे। प्राधिकरण ने उनकी जमीन का 2004 में अधिग्रहण किया था। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 300-ए के तहत संपत्ति का अधिकार अब भी एक सांविधानिक अधिकार है। मुआवजा आदेश भी दिसंबर, 2023 में तब पारित किया गया, जब शीर्ष अदालत ने जीडीए को अवमानना नोटिस जारी किया। हालांकि पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि जीडीए ने जानबूझकर कोर्ट के आदेशों की अवज्ञा नहीं की और अवमानना मामले का निपटारा कर दिया।

गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) के खिलाफ अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने प्राधिकरण की इस दलील को खारिज कर दिया िक भूस्वामियों की ओर से मांगी गई जमीन मुहैया करा दी गई है। पीठ ने यह भी कहा कि जीडीए को यह निष्कर्ष निकालने में सात वर्ष लग गए कि अधिग्रहीत भूमि आवासीय नहीं, बल्कि कृषि भूमि थी। हालांकि, पीठ ने कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही को यह पाते हुए बंद कर दिया कि जीडीए व अदालत में प्राधिकरण का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों के बीच साझा की गई जानकारी गलत हो सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसने मुआवजे के फैसले की वैधता पर निर्णय नहीं किया है और यदि जरूरी हो तो भूमि मालिक अभी भी इसे चुनौती देने को स्वतंत्र हैं। ऐसी किसी भी चुनौती पर छह माह में फैसला किया जाना चाहिए।


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