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अंधेरे में मशालों के साथ गूंजे मुकेश बोरा की गिरफ्तारी के नारे

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रिपोर्ट: अजय अनेजा

पिछली खबर में हमने कहा था कि तमाम संघों के भीतर ऐसे खेल नए नहीं हैं, यह सब राजनीतिक पार्टियों के अंदर बाहर वर्चस्व की लड़ाइयां हैं। जो संदेह था आज शाम को वह लालकुआं की सड़कों में देखने को भी मिल गया। आज दोपहर महिलाओं ने जिनको षड्यंत्रकारी कह कर लालकुआं थाने में हल्ला बोल किया था, शाम उन्हीं लोगों सहित उनके समर्थकों ने जवाबी हल्ला बोल कस्बे की सड़कों को अपनी आवाज की मशलों से रौशन कर दिया।

आज दोपहर मुकेश बोरा की पत्नी पार्वती के नेतृत्व में कस्बे की कोतवाली में कहा गया था कि मुकेश बोरा को साजिशन फंसाने में कुछ लोगों का गैंग काम कर रहा है। यही नहीं बा – कायदा उनके नाम सतीश जोशी, भरत नेगी, अजय क्विरा, रोहित दुम्का और अजीत कुमार के रूप में लिए गए। अब इसका असर अपेक्षित तो था ही, जिसके फलस्वरूप शाम को कस्बे की सड़कें ऐसे रौशन हुई कि धमक पूरे राज्य भर में गूंज गई।

लेकिन बड़ा सवाल मुंह बाए खड़ा है कि मुकदमा दर्ज होने के बाद कोतवाल आंदोलनरत महिलाओं से यह तो कह गए कि आप लोग हम पर दबाव बनाने की कोशिश मत करिए, लेकिन मुकेश बोरा की गिरफ्तारी पर अब भी चुप्पी साधे क्यों हैं। क्या पुलिस तंत्र इतना कमजोर है कि मुकेश बोरा को खोज निकालने में असमर्थ है, या फिर मामला राजनीतिक दबाव या बैलेंस बनाए रखने का है। महिला दुष्कर्म के मामले पर उत्तराखंड ही नहीं पूरे देश में बवाल मचा हुआ है तो एक कस्बे के थानेदार इतना रिस्क क्यों कर ले रहे इसे समझे जाने की जरूरत भी है।

इस बीच हमने इस कथित पीड़ित महिला का फेसबुक अकाउंट भी देखा जिसमें उनके आहत होने की कोई बात तो नहीं दिखी पर कुछ राजनीतिक लोग उनके fb मित्र जरूर मिले, हो सकता है उन्हें राजनीतिक हस्तियों से अभासी मित्रता पसंद हो । खैर यह उनका निजी मामला है पर उनकी व्यथा की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी में देर के लिए उनका कोई बयान भी नहीं आया जबकि उन्होंने माली हालत खराब होने के बावजूद दो महिला वकील भी हायर कर रखी हैं।

इस मामले में अब रोज यही सब होना दिख रहा कि लालकुआं कस्बे की जनता अपने दुख दर्द भुला कर सड़कों पर रोज यही तमाशा देखे और बताए कि कस्बों के थानेदार ऐसे मुद्दों को कैसे देशव्यापी बना कर स्थानांतरण पा जाते हैं।


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