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*”इलेक्टोरल बॉन्ड” पर Supreme court ने लगाई रोक, बताया सूचना के अधिकार का उल्लंघन; कहा- “वोटर्स को पार्टियों की फंडिंग जानने का हक..” जानिए क्या होता है “इलेक्टोरल बॉन्ड”?*

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इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. SC ने चुनावी बॉन्ड को अवैध करार देते हुए उस पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. वोटर को पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानने का हक है, इलेक्‍टोरल बॉन्‍ड पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है. CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्‍यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने कहा कि देश के नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार के पास पैसा कहां से आता है और कहां जाता है…

बता दें की सुप्रीम कोर्ट संविधान पीठ ने कहा कि कोर्ट का मानना है कि गुमनाम चुनावी बॉन्‍ड सूचना के अधिकार (RTI) और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है. संविधान पीठ में प्रधान न्‍यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के साथ ही जस्टिस संजीव खन्‍ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।

लोकसभा चुनाव के ऐलान से महीने भर पहले इलेक्टोरल बॉन्ड्स की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना रहा है. कोर्ट ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. वोटर को पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानने का हक है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने पिछले साल 31 अक्टूबर से नियमित सुनवाई शुरू कर रही थी. इस दौरान कोर्ट ने 3 दिन लगातार इस मामले पर सुनवाई भी की थी।

एक प्रतिशत वोट मिलने की शर्त

योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था. इसके मुताबिक चुनावी बॉण्ड को भारत के किसी भी नागरिक या देश में स्थापित इकाई खरीद सकती है. कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉण्ड खरीद सकता है. जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल चुनावी बॉण्ड स्वीकार करने के पात्र हैं. शर्त बस यही है कि उन्हें लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों. चुनावी बॉण्ड को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जाएगा. बॉन्ड खरीदने के पखवाड़े भर के भीतर संबंधित पार्टी को उसे अपने रजिस्टर्ड बैंक खाते में जमा करने की अनिवार्यता है. अगर पार्टी इसमें विफल रहती है तो बॉन्ड निरर्थक और निष्प्रभावी यानी रद्द हो जाएगा।

क्या होते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड

साल 2018 में इस बॉन्ड की शुरुआत हुई. इसे लागू करने के पीछे मत था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा. इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती हैं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते हैं. भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया. ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की हैं।

क्यों जारी हुआ था इलेक्टोरल बॉन्ड

चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने साल 2018 इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की. 2 जनवरी 2018 को तत्कालीन मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अधिसूचित किया था. इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 के द्वारा लाए गए थे. यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते हैं. इसके लिए ग्राहक बैंक की शाखा में जाकर या उसकी वेबसाइट पर ऑनलाइन जाकर इसे खरीद सकता है।

 

 

रिपोर्ट: साक्षी सक्सेना 


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