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*दुखद ख़बर…जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज का निधन, “उनके अमूल्य योगदान को याद रखेंगी पीढ़ियां”…:- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी..*

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विश्व प्रख्यात संत शिरोमणि गुरु देव विद्यासागर जी महाराज का रविवार को निधन हो गया है, पूरे देश के लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं, छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में जैन मुनि आचार्य विद्यासागर महाराज का रविवार को निधन हो गया है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विद्यासागर महाराज के निधन पर शोक व्यक्त किया है. पीएम ने ट्वीट करते हुए लिखा कि मेरी प्रार्थनाएं आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी के अनगिनत भक्तों के साथ हैं. आने वाली पीढ़ियां उन्हें समाज में उनके अमूल्य योगदान के लिए याद रखेंगी. पीएम ने कहा कि आध्यात्मिक जागृति के उनके प्रयासों, गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और अन्य कार्यों के लिए उन्हें याद रखा जाएगा।

पीएम पीएम ने कहा कि मुझे वर्षों तक उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का गौरव प्राप्त हुआ. मैं पिछले साल के अंत में छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में चंद्रगिरि जैन मंदिर की अपनी यात्रा को कभी नहीं भूल सकता. उस समय मैंने आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी के साथ समय बिताया था और उनका आशीर्वाद भी प्राप्त किया था. वहीं, बीजेपी के बैठक में जेपी नड्डा ने भी शोक व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि दी।

आरएसएस ने भी दी विनम्र श्रद्धांजली

आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेडकर ने भी विद्यासागर महाराज को श्रद्धांजलि अर्पित की है. उन्होंने कहा है कि पूजनीय जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने आज प्रातः अपने शरीर को त्याग दिया. उनके पवित्र जीवन को शत-शत नमन एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से विनम्र श्रद्धांजली। कांग्रेस नेता कमलनाथ ने ट्वीट करते हुए कहा कि पूज्य संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के संल्लेखना पूर्वक समाधि लेने की खबर न सिर्फ जैन समाज के लिए बल्कि समूचे भारत और विश्व के लिए अपूरणीय क्षति है. ब्रह्मलीन आचार्य श्री विद्याधर जी महाराज ज्ञान, त्याग, तपस्या और तपोबल का सागर रहे हैं. भारत भूमि ऐसे अलौकिक संत के दर्शन, प्रेरणा, आशीष, स्पर्श और करूणा से धन्य हुई है. मैं आचार्य श्री विद्यासागर जी को भावपूर्ण प्रणाम करता हूं. शत् शत् नमन करता हूं. आचार्य श्री हमेशा हमारे हृदय में, हमारी चेतनाओं में, हमारी आस्थाओं में और हमारे जीवन पथ पर शाश्वत रहेंगे।

कौन हैं विद्यासागर जी महाराज?

विश्व प्रख्यात संत शिरोमणि गुरु देव विद्यासागर जी महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था. उनके पिता मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि 108 मूनी मल्लिसागर बने. उनकी माता श्रीमंती जो बाद में आर्यिका 105 समयमति माताजी बनीं. आचार्य विद्यासागर जी को 30 जून 1968 में अजमेर में 22 वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी, जो आचार्य शांतिसागर जी के शिष्य थे. आचार्य विद्यासागर जी को 22 नवंबर 1992 में गुरु ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था।

उनके अलावा सभी घर के लोग संन्यास ले चुके हैं. उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर जी और मुनि समयसागर जी कहलाए.आचार्य विद्यासागर संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं. उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएं की हैं. सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है।

उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं. उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है. विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है. आचार्य विद्यासागर जी कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं. आचार्य श्री के शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है. इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है. मुनि प्रणम्यसागर जी ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।

आचार्य विद्यासागर ने किन चीजों को त्यागा?

  • कोई बैंक खाता नहीं, कोई ट्रस्ट नहीं, कोई जेब नहीं , कोई मोह माया नहीं, अरबों रुपए जिनके ऊपर निछावर होते हैं उन गुरुदेव के कभी धन को स्पर्श नहीं किया.
  • आजीवन चीनी का त्याग
  • आजीवन नमक का त्याग
  • आजीवन चटाई का त्याग
  • आजीवन हरी सब्जी का त्याग, फल का त्याग, अंग्रेजी औषधि का त्याग, सीमित ग्रास भोजन, सीमित अंजुली जल
  • आजीवन दही का त्याग
  • सूखे मेवा का त्याग
  • आजीवन तेल का त्याग,
  • सभी प्रकार के भौतिक साधनों का त्याग
  • एक करवट में शयन, बिना चादर, गद्दे, तकिए के सिर्फ तख्त पर किसी भी मौसम में सोना.

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