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*Bharat के इस राज्य में है अनपढ़ों का गांव, नहीं मिलेगा एक भी मैट्रिक पास; वजह जानकर रह जाएंगे दंग…*

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सबसे ज्यादा आईएएस और पीसीएस अफसर बिहार के ही युवा होते हैं और राज्य सरकार बजट का बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च करती है, लेकिन इसके बावजूद सूबे में शिक्षा की हालत खराब है। मात्र कहने को ही आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, लेकिन आज भी हमारे देश में लोगों की सोच वो ही प्राचीन और ठेठ है चाहें वह महिलाओं को लेकर हो या फिर शिक्षा को लेकर, आपको बता दें की राज्य के बांका जिला के रजौन प्रखंड में एक ऐसा गांव भी है, जो विकास के दावों को मुंह चिढ़ा रहा है. प्रखंड क्षेत्र के नवादा स्थित मुसहरी गांव में जहां 300 परिवार निवास करते हैं, वहां के एक भी लोग आज तक मैट्रिक नहीं कर पाए हैं. यहां साक्षरों की संख्या भी गिनती की है।

गांव में स्कूल रहने के बाद भी नहीं पढ़ पाते हैं बच्चे

ग्रामीण अशोक मांझी बताते हैं कि देश तो आजाद हो गया है, लेकिन आज भी हम लोग आजाद नहीं हैं. अब भी हमें अछूत ही माना जाता है. यही वजह है कि हम बच्चों को पढ़ा नहीं पा रहे हैं. गांव से सटा आंगनबाड़ी केंद्र, मिडिल और हाई स्कूल है, लेकिन वहां हमारे बच्चे नहीं पढ़ सकते हैं. गांव की आशा देवी ने बताया कि हम लोग चाहते हैं कि बच्चे पढ़-लिखकर अच्छा काम करें, लेकिन इन्हें शुरुआती शिक्षा भी नहीं मिल पाती है, तो आगे क्या पढ़ाई करेंगे. बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र जाते जरूर हैं, लेकिन वहां उन्हें कोई नहीं पढ़ाता है. प्रारंभिक शिक्षा के अभाव में बच्चे उच्च शिक्षा से भी वंचित रह जाते हैं और यूं ही भटकते रहते हैं. हमारे पूर्वज भी नहीं पढ़े-लिखे थे और आने वाली पीढ़ी भी नहीं पढ़ रही है. समझ में नहीं आता है कि आगे चलकर इस समुदाय का क्या होगा।

नई पीढ़ी के बच्चों को भी नहीं है अक्षर का बोध

मुसहरी समुदाय के प्रमुख अशोक मांझी बताते हैं कि बच्चों को अक्षर तक का बोध नहीं है. नई पीढ़ी भी शिक्षा से अछूता है. लोग कहते हैं कि छुआ-छूत खत्म हो गया है, लेकिन आज भी मुसहरी समुदाय के लोगों को हीन दृष्टि से ही देखा जाता है. इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण इस समुदाय में शिक्षा का अभाव है. उन्होंने बताया कि सबसे प्रमुख कारण गरीबी और भूख की मार है. आर्थिक स्थिति सही नहीं रहने से बच्चों को पढ़ा नहीं पाते हैं. खुद पढ़े-लिखे नहीं होने की वजह से बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा नहीं दे पाते हैं. इसके चलते बच्चों को आगे की पढ़ाई नहीं समझ आती है. इस गांव में कुल 300 परिवार है, जिसमें सभी लोग अनपढ़ हैं और दूसरों के यहां मजदूरी करते हैं. सरकार भी हमारे ऊपर ध्यान नहीं देती है और आजादी के बाद भी हम गुलामी की जिंदगी जी रहे हैं।


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