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*”Supreme Court” का ऐतिहासिक फैसला, कहा- “सदन में नोट लेकर दिया वोट या भाषण तो चलेगा केस…” सांसदों को कानूनी छूट से इनकार।*

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सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सांसदों और विधायकों को सदन में वोट डालने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने के मामले में अभियोजन से छूट नहीं होती. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सात जजों की संविधान पीठ ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) रिश्वत मामले में 5 न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाए गए 1998 के फैसले को सर्वसम्मति से पलट दिया. पांच न्यायाशीधों की पीठ के फैसले के तहत सांसदों और विधायकों को सदन में वोट डालने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने के मामले में अभियोजन से छूट दी गई थी…

सुप्रीम कोर्ट ने वोट के बदले नोट मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया है. अब अगर सांसद पैसे लेकर सदन में भाषण या वोट देते हैं तो उनके खिलाफ केस चलाया जा सकेगा. यानी अब उन्हें इस मामले में कानूनी छूट नहीं मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बड़ा फैसला सुनाते हुए पिछले फैसले को पलट दिया है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के नरसिम्हा राव के फैसले को पलट दिया है. 1998 में 5 जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से तय किया था कि इस मुद्दे को लेकर जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलटने के चलते अब सांसद या विधायक सदन में मतदान के लिए रिश्वत लेकर मुकदमे की कार्रवाई से नहीं बच सकते हैं।

खत्म हो जाती है ईमानदारी

CJI की अध्यक्षता वाली बेंच ने सहमति से दिए गए अहम फैसले में कहा है कि विधायिका के किसी सदस्य द्वारा किया गया भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को खत्म कर देती है।

सांसदों को छूट से असहमति

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि हमने विवाद के सभी पहलुओं पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लिया है. क्या सांसदों को इससे छूट मिलनी चाहिए. इस बात से हम असहमत हैं और बहुमत से इसे खारिज करते हैं. नरसिम्हा राव मामले में बहुमत का फैसला, जिससे रिश्वत लेने के लिए अभियोजन को छूट मिलती है. वह सार्वजनिक जीवन पर बड़ा प्रभाव डालता है।

इसलिए खारिज किया फैसला

CJI ने कहा,’अनुच्छेद 105 के तहत रिश्वतखोरी को छूट नहीं दी गई है, क्योंकि अपराध करने वाले सदस्य वोट डालने से संबंधित नहीं हैं. नरसिम्हा राव के मामले की व्याख्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194 के विपरीत है. इसलिए हमने पी नरसिम्हा राव मामले में फैसले को खारिज कर दिया है.’

7 सदस्यीय पीठ ने सुनाया फैसला

बता दें कि 5 सदस्यीय पीठ ने इस केस से जुड़े मसले को व्यापक और जनहित से जुड़ा हुआ मानते हुए 7 सदस्यीय पीठ को सौंप दिया था. तब कहा गया था कि यह मसला राजनीतिक सदाचार से जुड़ा हुआ है. यह भी कहा गया था कि संसद और विधानसभा सदस्यों को छूट का प्रावधान इसलिए दिया गया है, ताकि वे मुक्त वातावरण और बिना किसी परिणाम की चिंता के अपने दायित्व का पालन कर सकें।

किस मुद्दे से जुड़ा है मामला

दरअसल, यह मामला झामुमो के सांसदों के रिश्वत कांड पर आए आदेश से जुड़ा है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट विचार कर रहा था. आरोप था कि सांसदों ने 1993 में नरसिम्हा राव सरकार को समर्थन देने के लिए वोट दिया था. इस मसले पर 1998 में 5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था. लेकिन अब 25 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया है. यह मुद्दा दोबारा तब उठा, जब झमुमो की विधायक सीता सोरेन ने अपनने खिलाफ जारी आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने की याचिक दाखिल की. उन्होंने कहा कि संविधान में उन्हें अभियोजन से छूट मिली हुई है. दरअसल, सीता सोरेन पर आरोप था कि उन्होंने 2012 के झारखंड राज्यसभा चुनाव में एक खास प्रत्याशी को वोट देने के लिए रिश्वत ली थी।

 

 

रिपोर्ट: साक्षी सक्सेना 

Rajeev Chawla


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