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फर्जी सिम का चला था खेल, STF ने भेजा जेल

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फर्जी सिम कार्ड रैकेट का पर्दाफाश: 748 नहीं, दो हजार से अधिक सिम बेचने का है शक
नेपाल से भारत तक फैला नेटवर्क, आरोपी रघुवीर पहले भी जा चुका है जेल

राजीव चावला

रुद्रपुर।
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ और नैनीताल जनपदों में फर्जी सिम कार्ड कारोबार का बड़ा खुलासा हुआ है। एसटीएफ और साइबर क्राइम सेल ने संयुक्त कार्रवाई करते हुए ऐसे रैकेट का भंडाफोड़ किया है, जो न सिर्फ भारत बल्कि नेपाल तक फर्जी सिम कार्ड बेचने का नेटवर्क चला रहा था। गिरफ़्तार आरोपी रघुवीर के कब्जे से अब तक 748 प्री-एक्टिवेटेड सिम कार्ड बरामद किए गए हैं। लेकिन दूरसंचार कंपनियों और एजेंसियों के मुताबिक यह संख्या 2,000 से अधिक हो सकती है।

दुकान की आड़ में चल रहा था धंधा
पकड़ा गया आरोपी रघुवीर बेरीनाग में “आरके इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मोबाइल सेंटर” नाम से दुकान चलाता था। मोबाइल और सिम कार्ड की बिक्री की आड़ में वह भोले-भाले ग्रामीणों और यात्रियों को नए सिम कार्ड के आकर्षक ऑफर देकर उनकी पहचान संबंधी दस्तावेज ले लेता था। इन दस्तावेजों का इस्तेमाल वह फर्जी बायोमेट्रिक डेटा के ज़रिए नए सिम एक्टिवेट करने में करता था, जिनका बाद में वह भारत-नेपाल सीमा पर दुरुपयोग करता था।

पहले भी जा चुका है जेल
साइबर क्राइम सेल प्रभारी अरुण कुमार के अनुसार रघुवीर वर्ष 2024 में भी फर्जी सिम कार्ड बेचने के आरोप में पिथौरागढ़ से जेल जा चुका है। लेकिन जेल से रिहा होने के बाद उसने फिर से यह नेटवर्क सक्रिय कर लिया और अब यह इंटरनेशनल स्केल पर काम करने लगा।

सिर्फ भारत में नहीं, नेपाल में भी बिकते थे सिम
रघुवीर द्वारा सक्रिय किए गए अधिकांश सिम कार्ड नेपाल भेजे गए थे। नेपाल से भारत आने वाले कई लोगों को सीमावर्ती क्षेत्रों में यही सिम कार्ड उपलब्ध कराए गए। खास बात यह है कि कई बार सिम कार्ड पोर्ट कर उन्हें नई पहचान दी जाती थी ताकि उनका वास्तविक खरीदार कभी पकड़ा न जा सके।

साइबर ठग और राष्ट्रविरोधी ताकतें करते हैं इस्तेमाल
एसटीएफ के अनुसार इस तरह के फर्जी सिम कार्ड अक्सर साइबर अपराधी और राष्ट्रविरोधी तत्वों द्वारा उपयोग किए जाते हैं। व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इन फर्जी नंबरों का इस्तेमाल कर ठगी, जासूसी और देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है।

फर्जी सिम प्राप्त करना भी है अपराध
एसटीएफ के उपाधीक्षक आरबी चमोला ने स्पष्ट किया कि फर्जी सिम कार्ड का न केवल वितरण बल्कि इन्हें प्राप्त करना भी कानूनन अपराध की श्रेणी में आता है। और मामला तब और गंभीर हो जाता है जब यह सिम कार्ड अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेचे जाते हैं।

सिम जारी करने की प्रक्रिया में गड़बड़ी
रघुवीर आईडी वेरिफिकेशन के नाम पर लोगों के दस्तावेज जमा कर लेता था और अगली ही सुबह किसी और व्यक्ति के फिंगरप्रिंट या गलत बायोमेट्रिक से नया सिम एक्टिवेट कर देता था। संबंधित व्यक्ति को जानकारी तक नहीं होती थी कि उसके नाम पर सिम जारी कर दिया गया है, जिसे शायद कोई नेपाल में इस्तेमाल कर रहा हो।

टेलीकॉम विभाग की भूमिका अहम
इस पूरे खुलासे में दूरसंचार विभाग, गृह मंत्रालय, और कई टेलीकम्यूनिकेशन कंपनियों की तकनीकी सहायता बेहद अहम रही। विशेष रूप से डिजिटल इंटेलिजेंस विभाग के निदेशक नवीन जाखड़, I4सी डिप्टी डायरेक्टर मुनेश दत्त, और POS अधिकारी रूशी मेहता की सक्रिय भूमिका के चलते इस नेटवर्क को ट्रेस किया गया।
एसटीएफ सीईओ डॉ. राजेश कुमार, आईजी रूपा, और डीसीपी रश्मि शर्मा यादव के नेतृत्व में जांच को दिशा मिली।

जांच जारी, हजारों सिम की होगी स्कैनिंग
अब एसटीएफ द्वारा यह जांच की जा रही है कि इन फर्जी सिम कार्डों का इस्तेमाल किन-किन अपराधों में हुआ है। सभी सिम नंबरों का डेटा निकाला जा रहा है और कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स (CDR) की जांच से यह पता लगाया जाएगा कि क्या इनका उपयोग साइबर क्राइम या राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में किया गया।

यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की गिरफ्तारी का नहीं, बल्कि एक बेहद खतरनाक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैले साइबर सिम रैकेट का संकेत है। इस नेटवर्क को तोड़ना न केवल साइबर सुरक्षा बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से भी अनिवार्य हो गया है।

Rajeev Chawla


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