उत्तराखंड: एक तरफ जहां फरवरी माह में ही लोगो को भीषण गर्मी का सामना कर पड़ रहा है तो वहीं उत्तराखंड राज्य में गर्मियों की दस्तक के साथ ही भीषण जल संकट के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। जानकारी के लिए बता दें की प्रदेश के 4624 गदेरे और झरनों में तेजी से पानी की कमी आने लगी है। इनमें से 461 पेयजल स्रोत तो ऐसे हैं, जिनमें 76 प्रतिशत से ज्यादा पानी कम हो गया है।
बता दें की पानी कम होने वाली स्रोतों में पौड़ी सबसे पहले स्थान पर है। जल संस्थान की ग्रीष्मकाल में पेयजल स्रोतों की ताजा रिपोर्ट से इसका खुलासा हुआ है।जल संस्थान ने ग्रीष्मकाल के मद्देनजर पेयजल किल्लत के लिए सभी स्रोतों का प्राथमिक अध्ययन कराया है। इनमें से 10 फीसदी (461) पेयजल स्रोत ऐसे हैं, जिनमें 76 प्रतिशत से अधिक पानी सूख चुका है। अब इनसे इतना कम पानी आ रहा है कि आपूर्ति मुश्किल हो चुकी है। वहीं, 28 फीसदी(1290) पेयजल स्त्रोत ऐसे हैं, जिनमें 51 से 75 प्रतिशत तक पानी सूख चुका है। बता दें की इनसे जुड़ी आबादी के लिए भी पेयजल संकट पैदा होने लगा है। जबकि 62 फीसदी (2873) पेयजल स्त्रोत ऐसे हैं, जिनमें 50 प्रतिशत तक पानी खत्म हो चुका है। जल संस्थान पेयजल संकट की वैकल्पिक व्यवस्था बनाने में जुट गया है। सचिव पेयजल नितेश झा ने भी जल संस्थान को जरूरी आवश्यकताएं पूरी करने को कहा
इसके अलावा आपको बता दें की राज्य के सचिव पेयजल नितेश झा ने बताया कि आगामी यात्रा सीजन के मद्देनजर पेयजल आपूर्ति सुचारू रखने के लिए सरकार से आठ करोड़ का बजट मांगा गया है। इससे पेयजल लाइनों की मरम्मत, रखरखाव आदि का काम हो रहा है। वहीं, जल जीवन मिशन की योजनाएं कई जगहों पर शुरू होने से इस बार कुछ राहत रहने की भी उम्मीद जताई जा रही है।जल संस्थान के पास पेयजल आपूर्ति की वैकल्पिक व्यवस्था के तहत अपने 72 टैंकर हैं। जबकि जल संस्थान ने 219 किराए के टैंकर लिए हुए हैं। इनमें देहरादून में 14 अपने और 81 किराए के टैंकर शामिल हैं।
उन्होंने मीडिया से बातचीत में गढ़वाल विवि के भूगोल विभागाध्यक्ष प्रो. एमएस नेगी ने बताया कि इस बार गंभीर पेयजल संकट देखने को मिल सकता है। उनके शोधार्थी तीन साल से प्राकृतिक जल स्रोतों की निगरानी कर रहे हैं। वह लगातार देख रहे हैं कि पानी का स्राव लगातार कम होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज्यादा असर पेयजल स्रोतों पर पड़ रहा है। अगर यह सूख गए तो प्रदेश में पेयजल का बड़ा संकट पैदा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि हमें जंगलों की सुरक्षा करनी होगी। मिश्रित प्रजाति और स्थानीय प्रजाति के पेड़ लगाने होंगे।