उत्तराखंड: राज्य के चमोली जिले में स्थित आदि शंकराचार्य की तपस्थली जोशीमठ की भूमि लगातार जमीन में धंस रही है बता दें की 6 सौ से भी ज्यादा घरों में दरारें आ चुकी है जिसके कारण लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा जोशीमठ इस समय अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। लोगो के मन डर बना हुआ है की कहीं जोशीमठ हमेशा के खत्म न हो जाए इसका नामोनिशान न मिट जाएं। आपको बता दें की हेमकुंड साहिब और बद्रीनाथ का गेटवे कही जाने वाला जोशीमठ खत्म होने की कगार पर है। यहां मकान, होटल जमींदोज होने लगे हैं। साथ ही ऐतिहासिक नृसिंह मंदिर में भी दरारें आ गई हैं। आपको बता दें की जोशीमठ में हो रही भू धंसाव का कारण पता चल गया है बता दें की जोशीमठ को लेकर चार प्रमुख शोध हो चुके हैं, जिनमें अलग-अलग समय पर शोधकर्ताओं ने अलग कारण बताए। आपको बता दें की पांच प्रमुख कारण है जिसके कारण ,एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना की टनल का निर्माण,शहर में ड्रेनेज की व्यवस्था न होना,पुराने भू-स्खलन क्षेत्र बसा शहर,क्षमता से अधिक अनियंत्रित निर्माण कार्य,अलकनंदा नदी में हो रहा भू-कटाव इसके प्रमुख कारण है।
आपको बता दें की पिछले साल जुलाई में शोध करने वाले प्रो. एसपी सती का कहना है कि 24 दिसंबर 2009 में हेलंग की तरफ से लगभग तीन किमी की दूरी पर इस सुरंग में टनल बोरिंग मशीन फंस गई थी। उसके कारण सेलंग गांव से तीन किमी ऊपर पानी के भूमिगत स्रोत को उसने छेड़ दिया। इसके बाद लगभग एक माह तक वहां पानी रिसता रहा। उन्होंने आशंका जताई कि यह पानी भी जोशीमठ के धंसने की वजह हो सकता है। इसके अलावा तपोवन में पिछले साल जो त्रासदी आई थी, उसके बाद सुरंग में पानी घुस गया था। संभव है कि यह पानी अब नए स्रोत के जरिए बाहर आ रहा है। बता दें की उत्तराखंड के सचिव आपदा प्रबंधन डॉ. रंजीत सिन्हा का कहना है कि जोशीमठ में ड्र्रेनेज व सीवेज का काम मजबूती से करने की जरूरत है। पिठले साल विशेषज्ञ समिति की जो रिपोर्ट आई थी, उसमें भी ड्रेनेज व सीवेज की आवश्यकता पर बल दिया गया था। इसके लिए सिंचाई विभाग ने प्रक्रिया शुरू की हुई है। ,आपको बता दें की जियोलॉजिक सर्वे ऑफ इंडिया(जीएसआई) के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डॉ. प्रसून जाना का कहना है कि जोशीमठ में निर्धारित क्षमता से अधिक बहुमंजिला इारमतें बनने से अत्यधिक दबाव बना है। उनका कहना है कि आवासीय एवं व्यावसायिक भवनों के अंधाधुंध निर्माण से प्रति वर्गमीटर जमीन पर दबाव बढ़ गया है, जिससे भू धंसाव को बढ़ावा मिल रहा है।, इसके साथ ही आपको बता दें की अलकनंदा में भू-कटाव: वाडिया इंस्टीट्यूट की वरिष्ठ भूस्खलन वैज्ञानिक डॉ. स्वप्नामिता चौधरी का कहना है कि बदरीनाथ के उच्च हिमालयी क्षेत्र से निकलने वाली अलकनंदा और धौलीगंगा के संगम स्थल विष्णुप्रयाग में दोनों नदियां लगातार टो कटिंग कर रही हैं। विष्णुप्रयाग से ही जोशीमठ शहर का ढलान शुरू होता है। नीचे हो रहे कटाव के चलते जोशीमठ क्षेत्र का पूरा दबाव नीचे की तरफ हो रहा है। इसके चलते भू-धंसाव में बढ़ोतरी हुई है।