Friday, December 1, 2023
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*पढ़िए क्यों महात्मा गांधी की हत्या करने के बाद गोडसे हुआ था नतमस्तक ? एक Click में👉…*

नाथू राम गोडसे को आज कौन नहीं जानता भारत का बच्चा बच्चा तक उन्हें इसलिए जनता है क्योंकि उन्होंने महात्मा गांधी की हत्या की थी, पर सवाल है क्यों वह महात्मा गांधी की बाद नतमस्तक हुए थे….

 

रिपोर्ट: साक्षी सक्सेना 

आपको बता दें की नाथू राम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी. जिसके लिए गोडसे को फांसी की सजा दी गई थी. 74 साल पहले आज के ही दिन यानी 15 नवंबर 1949 को गोडसे और उनके सहयोगी नारायण आप्टे को अंबाला सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी. गोडसे की फांसी आजाद भारत की पहली फांसी के रूप में दस्तावेजों में दर्ज है. वहीं गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन सरकार ने आरएसएस पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था क्योंकि गोडसे आरएसएस का सक्रिय सदस्य था. मैं गांधी के सम्मान में नतमस्तक हुआ था. गोडसे ने बापू की हत्या के बाद ऐसा क्यों कहा था. आइए जानते हैं।

महात्मा गांधी ने देश की जो सेवा की है, उसके लिए मैं उनका सम्मान करता हूं और इसीलिए उन्हें गोली मारने से पहले मैं उनके सामने नतमस्तक हुआ, लेकिन पूज्य मातृभूमि के विभाजन का अधिकार किसी बड़े से बड़े महात्मा को नहीं है और इस जुर्म के लिए कोई न्यायालय या कानून नहीं है, जो देश को दो हिस्सों में बांटने वाले अपराधी को सजा दे सके. इसलिए मैंने गांधी को गोली मारी. यह बातें गोडसे ने महात्मा गांधी को गोली मरने के बाद कही था. 74 साल पहले आज के ही दिन यानी 15 नवंबर 1949 को गोडसे और उनके सहयोगी नारायण आप्टे को अंबाला सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी।

RSS पर लगा प्रतिबंध

महात्मा गांधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे के बयान का मतलब यही है, जो उन्होंने अंतिम समय में दिल्ली के लाल किला में लगी विशेष अदालत के सम्मुख दिया था. निचली अदालत की गोडसे और उनके सहयोगी नारायण आप्टे की फांसी की सजा को पंजाब हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा और दोनों को फांसी की सजा दी गई थी।

गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि गोडसे आरएसएस के सक्रिय सदस्य थे. हालांकि, आरएसएस ने इस बात से लगातार इनकार किया क्योंकि गोडसे का दूसरे सर संघचालक गुरु गोलवलकर से पूर्व में वैचारिक मतभेद हो गया था. तब गोडसे ने आरएसएस से दूरी बना ली थी. हिन्दू महासभा के सदस्य वे बने रहे।

गोडसे ने नहीं तोड़ा RSS से रिश्ता

गोडसे के भाई गोपाल ने अपनी किताब गांधी वध और मैं में लिखा है कि नाथू राम गोडसे ने कभी भी आरएसएस से रिश्ता नहीं तोड़ा. आश्चर्यजनक के रूप से गांधी के दो पुत्रों मणिलाल गांधी एवं रामदास गांधी ने गोडसे की फांसी की सजा कम करने की वकालत की लेकिन पीएम नेहरू, उप प्रधानमंत्री मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी का समर्थन नहीं मिला और उन्हें फांसी दे दी गई।

गांधी के एक और पुत्र देवदास गोडसे से मिलने दिल्ली में भी गए थे, जब वे जेल में बंद थे. गोडसे ने उन्हें पहचान लिया और कहा कि आप आज पितृ विहीन हो गए हैं. इसका कारण मैं हूं. इसका मुझे खेद भी है, लेकिन विश्वास करें कि ऐसा मैंने शत्रुतावश नहीं किया. बाद में देवदास ने गोडसे को लिखे पत्र में जिक्र किया कि आपने मेरे पिता की नाशवान देह का अंत किया है लेकिन उनके विचार संसार के लाखों लोगों के दिलों में मौजूद हैं और आगे भी रहने वाले हैं।

परिजनों को नहीं दिया गया शव

15 नवंबर को जब गोडसे को फांसी के लिए ले जाया गया तो उनके हाथ में गीता और अखंड भारत का नक्शा था. फांसी के एक दिन पहले परिवार के कुछ सदस्य उन्हें मिले थे.अपने किए पर गोडसे को कोई पछतावा नहीं था. उनका शव परिवार को नहीं दिया गया. सरकार ने जेल के पीछे बहने वाली घग्घर नदी के किनारे अंतिम संस्कार कर दिया।

बाद में हिन्दू महासभा के कुछ कार्यकर्ता उनकी अस्थियां चुनकर ले आए जो गोडसे की इच्छानुसार आज भी सुरक्षित है क्योंकि उन्होंने सपना देखा था कि जब कभी अखंड भारत फिर से बने और सिंधु नदी हमारा हिस्सा बने तो उसमें ही उसे प्रवाहित किया जाए. चाहे दो-चार पीढ़ियां लग जाएं।

तब से अस्थियां सुरक्षित रखी हुई हैं. साल 2014 में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने पर गोडसे का एक बार फिर से महिमामंडन शुरू हुआ लेकिन योजना परवान नहीं चढ़ सकी. उनके जीवन पर बनी फिल्म पर रोक लग गई. आज भी 15 नवंबर को नाथूराम गोडसे की याद में देश के अलग-अलग हिस्सों में कार्यक्रम होते आ रहे हैं।

सावरकर भी थे आरोपी

इस मामले में नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सजा सुनाई गई थी. वहीं गोडसे के भाई गोपाल गोडसे, विष्णु करकरे, दिगम्बर बड़गे, मदन लाल पहवा, दत्तात्रेय परचुरे और शंकर किस्तैया को उम्र कैद की सजा सुनाई गई. बाद में हाईकोर्ट ने दत्तात्रेय परचुरे और शंकर किस्तैया को बरी कर दिया. इस मामले में विनायक दामोदर सावरकर भी आरोपी थे, लेकिन जज आत्माचरण ने सावरकर को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था.

कब क्या हुआ?

  • 30 जनवरी, 1948 दिल्ली के बिरला मंदिर परिसर में गांधी की हत्या।
  • नाथूराम गोडसे पिस्टल के साथ मौके से ही गिरफ्तार
    10 फरवरी 1949 को लालकिला में लगी विशेष अदालत में सजा सुनाई गई
  • 21 जून 1949 को पंजाब हाईकोर्ट ने दत्तात्रेय परचुरे और शंकर किस्तैया को बरी कर दिया
  • 15 नवंबर 1949 को अंबाला सेंट्रल जेल में नाथू राम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी दी गई।

बचपन का रामचंद्र ऐसा बना नाथूराम

नाथूराम गोडसे का बचपन का नाम रामचन्द्र था. उनके तीन भाई और एक बहन की बचपन में ही मौत हो गई. तब परिवार ने मारे डर के रामचन्द्र को बेटी की तरह पाला. नाक छेदी गई थी. इसीलिए इनका नाम नाथूराम पड़ गया. जब छोटे भाई गोपाल का जन्म हुआ तो रामचन्द्र को भी बेटे के रूप में लालन-पालन शुरू हुआ लेकिन तब तक नाम पड़ चुका था फिर आजीवन वे नाथूराम के नाम से ही जाने-पहचाने गए।

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