Lok sabha Elections2024″ लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ विपक्षी पार्टियों के INDIA गठबंधन की पार्टियों के बीच रार थमने का नाम नहीं ले रहा है। सीटों के बंटवारे को लेकर बंगाल में कांग्रेस, टीएमसी और लेफ्ट पार्टी के बीच पेंच फंसती नजर रही है। ममता बनर्जी ने राज्य की कुल 42 सीटों में से कांग्रेस को मात्र दो सीटें छोड़ने का प्रस्ताव दिया है।
अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए विपक्षी पार्टियों ने INDIA गठबंधन बनाया है। गठबंधन के घटक दलों की तीन बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन हर बैठक में किसी ने किसी मुद्दे पर गठबंधन दलों का आपसी विरोध सामने आ रहा है. अब घटक दलों में सीटों के बंटवारे को लेकर चर्चा शुरू हुई है, लेकिन पश्चिम बंगाल में सीटों की बंटवारे की पेंच फंसती नजर आ रही है. पश्चिम बंगाल में लोकसभा की कुल 42 सीटों में से राज्य की सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी कांग्रेस को केवल दो सीटें छोड़ने के लिए राजी हैं।
तृणमूल कांग्रेस की ओर से इस बाबत कांग्रेस की ओर से प्रस्ताव दिया गया है, अगर कांग्रेस सीपीएम को एक सीट देना चाहती है तो ममता बनर्जी की पार्टी को इससे कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वह माकपा के लिए अलग से कोई सीट नहीं छोड़ेगी, कांग्रेस को अपने दो सीटों में ही माकपा के लिए एडजस्ट करना होगा।
बता दें कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की कुल 42 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस को 22, बीजेपी को 18 और कांग्रेस को दो सीटें मिली थी. लेफ्ट पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी. वहीं, 2021 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस की फिर से सत्ता में वापसी हुई थी. बीजेपी प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरी थी, लेकिन कांग्रेस और लेफ्ट को एक भी सीट नहीं मिली थी।
बता दें की हाल में हुए पंचायत चुनाव में तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, लेफ्ट और बीजेपी के बीच मुकाबला हुआ था, कांग्रेस और लेफ्ट के बीच कुछ सीटों पर समझौता होने के बावजूद तृणमूल कांग्रेस के साथ उनकी टक्कर हुई थी. धूपगुड़ी विधानसभा उपचुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस का बीजेपी के साथ-साथ लेफ्ट और कांग्रेस के साथ मुकाबला हुआ था।
ममता कांग्रेस को केवल 2 सीटें देने को तैयार
ऐसे में बंगाल में INDIA की पार्टियां तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और माकपा के बीच समझौता सरल नहीं माना जा रहा था. ममता बनर्जी ने पहले घोषणा की थी कि वह सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगी, लेकिन अब उनका सुर थोड़ा नरम हुआ है. लेफ्ट ने बंगाल में तृणमूल कांग्रेस से किसी भी प्रकार का समझौता करने से इनकार कर दिया है.
अब ममता बनर्जी की पार्टी ने कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी के लिए मात्र दो सीटें छोड़ने की बात कही है, लेकिन राजनीतिक जानकारों का कहना है कि लेफ्ट और कांग्रेस के लिए इस प्रस्ताव को स्वीकार करना सहज नहीं होगा. आज से कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक शुरू हो रही है. निश्चित रूप से उस बैठक में अधीर रंजन चौधरी इस मुद्दे को उठाएंगे. वैसे अधीर लगातार ममता बनर्जी के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करते रहे हैं.
कांग्रेस और लेफ्ट के नेता तृणमूल कांग्रेस के प्रस्ताव को राजनीति अंहकार करार दे रहे हैं, लेकिन तृणमूल कांग्रेस के आला नेता का कहना है कि वे लोग कुछ विशिष्ट स्रोतों के जरिए सीटों का बंटवारा करना चाहते हैं. इसकी सूचना अन्य दलों को भी दे दी गयी है.
उन्होंने कहा कि जिन राज्यों में सीट बंटवारे पर बातचीत चल रही है, या जहां गठबंधन पहले से मौजूद नहीं है, वहां सीटों के बंटवारे के लिए तीन मानदंडों को अपनया गया है. एक, पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजे, दो, पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजे, तीन, पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के संयुक्त नतीजे.
टीएमसी के प्रस्ताव से गठबंधन में रार
तृणमूल का दावा है कि इन तीन मानदंडों को देखते हुए, यह स्वाभाविक है कि पश्चिम बंगाल में सीटों के बंटवारे के सवाल पर अंतिम फैसला तृणमूल का होगा. दूसरी ओर, इन तीन मापदंडों पर वामपंथी किसी रूप से खरे नहीं उतरते हैं। तृणमूल कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पार्टी सितंबर तक सीट विवाद का मुद्दा सुलझा लेना चाहती है। अधिक से अधिक 15 अक्तूबर तक यह मामला आगे बढ़ाया जा सकता है. पार्टी इसमें देरी नहीं चाहती है। पार्टी चाहती है कि जल्द से जल्द सीटों पर बंटवारे का फैसला हो।
लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में कांग्रेस के लिए पूरी तरह से तृणमूल कांग्रेस के सामने घुटने टेकना पूरी तरह से संभव नहीं प्रतीत होता है। ऐसे जरूरत पड़ने पर कोई वरिष्ठ नेता या तीसरी पार्टी का नेता बीचबचाव कर सकता है, लेकिन वर्तमान में बंगाल की राजनीतिक स्थिति को देखते हुए सीटों के बंटवारे को लेकर हल निकलना बहुत आसान नहीं दिख रहा है, क्योंकि लेफ्ट किसी भी कीमत पर ममता बनर्जी के प्रस्ताव को मानने के लिए तैयार नहीं होगा।
राजनीतिक जानकारों के कहना है कि बंगाल में लेफ्ट और कांग्रेस दोनों ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। यदि वे खासकर लेफ्ट ममता बनर्जी के प्रस्ताव पर राजी हो जाते हैं, तो फिर अपने समर्थकों और आने वाले चुनाव में अपने अस्तित्व को बनाए रखना उनके लिए मुश्किल होगा।
रिपोर्ट: साक्षी सक्सेना