12 नवम्बर को भारत समेत कई देशों में दिवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाएगा, आपको बता दें की लोग साफ सफाई, नए कपड़े, मिठाई, पटाखे जलाते हैं, माता लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि देश में एक गांव ऐसा है, जहां दिवाली के दिन मातम मनाया जाता है…
रिपोर्ट: साक्षी सक्सेना
जी हां आपको बता दें कि कर्नाटक के मेलकोटे गांव, का एक ऐसा रक्त रंजित इतिहास है, जिसके जख्म, हर साल दिवाली पर हरे हो जाते हैं, करीब 200 साल पहले इस गांव में एक ऐसा नरसंहार हुआ था,जो आज भी यहां के लोगों के जहन में बसा हुआ है।
आप टीपू सुल्तान को तो जानते ही होंगे, हमारे देश के कई इतिहासकार टीपू सुल्तान को महान और सर्वधर्म समभाव मानने वाले शासक के तौर पर देखते हैं, इतिहास की किताबों में टीपू सुल्तान को एक ऐसा शासक बताया जाता है जो अंग्रेजों से लड़ते हुए, युद्ध के मैदान में शहीद हो गया था। कई दरबारी इतिहासकार तो टीपू सुल्तान को मैसूर का शेर कहते हैं, लेकिन टीपू सुल्तान को लेकर यही इतिहासकार कई बातें छिपा जाते हैं। मेलकोटे गांव और टीपू सुल्तान का संबंध एक ऐसा काला इतिहास है, जिसे हमेशा से छिपाया गया।
कर्नाटक के इस गांव में नहीं मनाई जाती दिवाली
मेलकोटे गांव में आज से करीब 200 साल पहले दिवाली के दिन, टीपू सुल्तान के आदेश पर 800 हिंदुओं का नरसंहार किया गया था। आपको दरबारी इतिहासकारों की किताबों में शायद ये जानकारी ना मिले, लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी मेलकोटे गांव के लोग अपना ये इतिहास संजोकर रखते चले आए हैं। दिवाली के दिन, खुशियों के बजाए मातम मनाकर ये लोग टीपू सुल्तान और टीपू को महान बताने वालों को सच का आइना दिखाते हैं।
टीपू सुल्तान ने 800 हिंदुओं का किया था नरसंहार
दीवाली पर जब लोगों के घर चिरागों से रोशन होते थे, उस दिन मेलकोटे के 800 घरों के चिराग टीपू सुल्तान ने बुझा दिए, भले ही इतिहास में मेलकोटे गांव और आइंगर ब्राह्मणों के साथ हुए भेदभाव को जगह ना मिली हो लेकिन सच्चाई छुपाई नहीं जा सकती। आज भी यहां के लोगों के दिलों में दर्द भरा है..
कर्नाटक के मेलकोटे गाँव के हर गली में जब आप जाएंगे तो आपको हर वो एक परिवार मिल जाएगा, जिसके पूर्वजों का नरसंहार टीपू सुल्तान के द्वारा किया गया था,।वो दर्द भरी कहानियां आप आज भी इनकी आँखों में महसूस कर सकते हैं।
लोगों में आज भी टीपू के प्रति घृणा
यह गांव पुरी श्रीवैष्णण भगवान का गाँव है,।श्री रामानुजाचार्य जी इस गाँव में आए थे और यहां पर वैष्णव संप्रदाय का बोलाबाला है। एक वक्त ऐसा था कि जब दशहरा और दिवाली यहां बहुत बड़े स्तर पर मनाई जाती थी, टीपू सुल्तान के आने से पहले यहां दिवाली बहुत भव्य मनाई जाती थी। अब हम दिवाली नहीं मनाते हैं. पूर्वजों के साथ दिवाली में जो कुछ हुआ था, जो नरसंहार टीपू सुल्तान ने किया थ। वो इस्लाम को बढ़ाना चाहता था इसलिए हमारे पूर्वजों को मारा क्योंकि हमारे पूर्वजों को इस्लाम स्वीकार नहीं था, हमारे पूर्वजों के साथ जो कुछ हुआ वो पटाखे हमारे दिल के अंदर जल रहे हैं तो हम दिवाली पर बाहर पटाखे कैसे जला सकते हैं ? कुछ लोग टीपू को देशभक्त बताते हैं, लेकिन यहाँ हमारे ऊपर अत्याचार किया।
यहां के लोग कहते हैं कि टीपू सुल्तान (Tipu Sultan) ने कन्नड़ भाषा को खत्म करने के लिए पारसी भाषा लागू कर दी थी, लोगों ने अपने पूर्वजों से बताई बातों पर हमेशा यकीन किया। उनके पूर्वजों ने ही इन्हें बताया था कि एक ही समय पर टीपू ने कई सौ ब्राह्मणों को मारा डाला था, लोगों का कहना है कि टीपू सुल्तान देश का इस्लामीकरण चाहता था।
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के निदेशक डॉ ओम जी उपाध्याय भी टीपू सुल्तान की बर्बरता को कबूल करते हैं, वे कहते हैं कि भारत मे वर्षो से टीपू सुलतान के कृत्यों पर सफेद पेंट लगाने की कोशिश हो रही है। लेकिन अगर ऐतिहासिक साक्ष्यों पर गौर करें तो टीपू सुल्तान ने वर्ष 1790 के आसपास कर्नाटक के मेलकोट शहर में हजारों आयंगार ब्राह्मणों का छोटी दीपावली के दिन कत्लेआम किया था।
मूल स्रोतों पर जाए तो समकालीन साहित्यकार देवचंद्र की रचना राजकथावली सार में इस बात का विस्तृत वर्णन है, वही Oral refrence यानी लोक कथाओं में वर्षो से यह घटना निवासियों के बीच मौजूद है। जिन लोगों को टीपू सुल्तान सेक्युलर लगता हैं; उन्हें मैसूर का 1930 का गेज़ीटियर पढ़ना चाहिए, जिसके पन्ना नंबर 2698 पर टीपू सुल्तान के श्रीरंगपट्टनम के किले पर मौजूद एक शिलालेख का वर्णन है जिसमे टीपू काफिरों की मौत की कामना करता है।